*प्रश्न - ध्यान के समय पांव शून्य हो जाता है। डर लगता है कि कहीं एक समय के बाद पांव से चलना असंभव न हो जाय?*
उत्तर - थोड़ा तो असंभव हुआ हमारा भी, लेकिन यह बैठने से नहीं हुआ मेरे भाई! यह अधिक चलने से हुआ। तो किसी अतियों में नहीं जाना। यह जो एक घंटे की बैठक बिना पांव हिलाये बैठने को कहते है, वह अधिष्ठान की बैठक केवल शिविरों में है। घर में आ करके जोर-जबरदस्ती घंटे भर बैलूंगा या बैलूंगी ही, बिल्कुल पांव नहीं हिलायेंगे - ऐसी अतियों में नहीं जाना । बडी आसानी से घंटे भर बैठ सकते हो, पांव बदलने की जरूरत नहीं हो तो बैठो, अन्यथा बदल
लेना चाहिए। जोर-जबरदस्ती किसी बात की नहीं। और यह भी कि भाई, हमारा पांव सो जायगा, न जाने क्या हो जायगा, इसलिए १० मिनट की साधना की, फिर भागते फिरे। फिर आए १० मिनट की साधना की, फिर भागते फिरे तो यह भी नहीं होना चाहिए। घंटे भर की बैठक करनी है और जहां पांव बदलना आवश्यक हो, वहां बदलेंगे तो लंगड़े नहीं होंगे, बिल्कुल नहीं होंगे।
*🌷 Que: My foot becomes numb during meditation. Sometimes I fear it might be impossible to walk after sitting. What should I do?*
Goenkaji: "To some extent, it did become impossible for me to walk as well. But, it did not happen due to prolonged sitting! Rather, it happened because of too much walking. Here again, one should not go to extremes. The one-hour sittings of adhitthana, where you meditate with complete stillness, are only during the course. After reaching home you may have the resolve, ‘I will just forcibly sit for one hour without moving my leg; no matter what’. Don’t go to such extremes. If you can sit effortlessly then fine, otherwise just change your posture. There should be no forced effort about anything.
On the courses the hour-long sitting is a must, so don’t worry about numbness. If we change the posture when we need to then we will not lose our ability to walk. Not at all!"
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