धर्म की शुद्धता
धर्म की शुद्धता को कायम रखने के लिए पूज्य गुरुजी इतने सतर्क हैं कि उन्होंने वर्ष 2004 की नव वर्ष की सामूहिक साधना के अंत में अपने एक मार्मिक उद्बोधन में सहायक आचार्यों और साधकों को सावधान करते हुए बड़े कठोर शब्दों में कहा कि जैसे अन्य परंपराओं में पुरोहित खड़े हो गये, ऐसे ही बुद्ध की परंपरा में भी पुरोहित न खड़े हो जायं। उन्होंने बताया कि --
“...यदि कोई कहता है कि हम तुमको मैत्री देंगे, तुम्हारा सारा विकार खैंच लेंगे, तब कोई काम ही क्यों करेगा? किसी गुरु महाराज के पास बैठ कर मैत्री लेगा। घंटे भर मैत्री ली और सारा पाप तो उसने खैंच लिया । तो समझना चाहिए कि ये धर्म के दुश्मन हैं। किसी को दो-चार मिनट मैत्री दे देना भी तब अच्छी बात है, जबकि साथ-साथ यह समझाया जाय कि मैं मैत्री देता हूं, तुम समता का अभ्यास करो। मन में समता रखो, मैं मैत्री देता हूं। दो-चार मिनट की मैत्री तो ठीक है। मैत्री समता रखने में सहायक न कि मैं तेरे सारे विकार खैंचता हूं। इससे बचना चाहिए। अपने पांव पर खड़ा होना है।
धर्म तभी धर्म है जबकि हमें स्वावलंबी बनाता है। तो हर आचार्य का यही धर्म है कि लोगों को समझाये, अपने पांव पर खड़े हो । ‘अत्ता हि अत्तनो नाथो’ - तुम अपने मालिक हो और कोई मालिक नहीं। ‘अत्ता हि अत्तनो गति’ -अपनी गति तुम बनाते हो । दुर्गति भी तुम बनाते हो, सद्गति भी तुम बनाते हो, सारी गतियों के परे मुक्त अवस्था भी तुम्हीं बनाते हो, कोई दूसरा बनाने वाला नहीं। यह होश रहे साधकों में तो कोई भी आचार्य पागलपन में किसी की हानि नहीं कर पायेगा । क्योंकि साधक समझेगा। कोई कहे कि मेरे साथ बैठो, एक घंटे मैं तुम्हें साधना कराऊं, मैं मैत्री देता हूं, तेरे सारे पाप मैं खैंच लूंगा। तो उठ कर चले जाओ। ऐसी मैत्री नहीं चाहिए हमें । धर्म को जीवित रखना है तो शुद्ध रूप में जीवित रखना है।
अब तो ये आचार्य पैसा नहीं मांगते । अपना मान है, सम्मान है, गुरु की कुर्सी पर बैठे हैं और कोई सामने हाथ जोड़ करके बैठा है -हे गुरु महाराज! हमारे पाप धो दीजिए! अभी तो मान सम्मान के मारे करता है। एकधि पीढ़ी बीतते-बीतते दक्षिणा मांगना शुरू कर देगा। तेरे सारे पाप खत्म किये हमने, हमें कुछ नहीं दिया! अरे जो दोगे उसका अपना पुण्य है। तुमको बहुत पुण्य मिलेगा। फिर स्वर्ग में जाओगे, फिर तुम एक दम ब्रह्मलोक में जाओगे। शुरू हो जायगा। इसलिए अभी से चेतावनी दे रहे हैं। हम रहें न रहें, धर्म को बिगड़ने मत देना। हर साधक अपने पांव पर खड़ा होना सीखे। जो सिखाने वाला है, उसका यही काम है कि लोगों को अपने पांव पर खड़ा होना सिखाये । प्रेरणा दे कि तुझे मुक्त होना है भाई! अपने मन को तूने मैला बनाया, यह मैल तुझे निकालना है, तुझे दूर करना है। हमको रास्ता प्राप्त हुआ, हम तुम्हें बताते हैं। इस रास्ते चलोगे तो मैल निकाल लोगे। जब तक ऐसा होगा तब तक धर्म शुद्ध रहेगा, सदियों तक शुद्ध रहेगा। बड़ा लोक कल्याण करेगा।...”
(पू. गुरुजी के प्रवचन के कुछ अंश)
जून 2004 विपश्यना पत्रिका में प्रकाशित