🌻शुभ रात्रि 🌻
(सारीपुत्र और महामोद्गलयन)
सारिपुत्र (उपतिष्य) और महामोद्गलयन(कोलित) यह दो ब्राह्मण तरुण राजगृह में संजय परिव्राजक के पास ब्रम्हचर्य वास एवं शिक्षा ग्रहण करते थे। किंतु उनकी शिक्षाओं से संतुष्ट नहीं थे। किसी श्रेष्ठ धर्म की खोज में थे। उस समय एक दिन अश्वजीत भिक्षु पात्र लेकर चीवर पहने भिक्षाटन करने राजगृह में प्रविष्ट हुए। सारिपुत्र ने अश्वजीत की गंभीर गतिविधि देखी और वह अत्यंत प्रभावित हुआ। उनसे गुरु धर्म पूछने की प्रबल इच्छा से वह भिक्खू अश्वजित के पीछे जाने लगा।
अश्वजीत भोजनदान लेकर चले गए। सारीपुत्र ने उनके पास पहुंचकर कुशल क्षेम पूछा और बोला - मित्र! आप किसके नाम प्रव्रज्जित हुए हैं ? आप का गुरु कौन है ? आप किस धर्म को मानते हैं ?
इन प्रश्नों को अश्वजीत का उत्तर था - मित्र! निश्चित से जो शाक्य गौतम कुल के महान श्रमण वृद्ध हैं, उन्हीं के नाम से मैं प्रव्रज्जित हुआ हूं। वही मेरे गुरु है। मैं उन्हीं का धर्म मानता हूं।
यह सुनकर सारीपुत्र ने प्रश्न किया - आपके गुरु का सिद्धांत क्या है ? वह किस सिद्धांत को मानते हैं ? उनकी शिक्षा क्या है ?
अश्वजीत ने उत्तर दिया - मैं नया हूं! इस धर्म में अभी नया ही प्रव्रज्जित हुआ हूं! विस्तार से मैं नहीं बता सकता! इसलिए संक्षेप में तुमसे धम्म कहता हूं। सारीपुत्र बोले - मुझे उसका सार अवश्य बता दें! मैं सार ही चाहता हूं। सार से प्रयोजन है। अश्वजीत बोला - अवश्य।
तब अश्वजीत ने सारीपुत्र को यह धम्मपर्याय उपदेश कहा -
*हे धम्मा हेतु पभभवा हेतु तथागत आहं।*
*य च निरोधो एवं वादी महासमनो।।*
अर्थात कारण से उत्पन्न होने वाले जितने वस्तुएं हैं उनका हेतु है। यह हेतु तथागत बतलाते हैं और उनका निरोध भी बतलाते हैं। यही महाश्रमण बुद्ध का वाद (धम्म मार्ग) है।
तब सारीपुत्र प्रसन्न मुद्रा में महामोद्गलयन के पास गया और बोला मित्र - मैंने अमृत पा लिया है! हम भगवान बुद्ध के पास चले! तब यह दोनों संजय परिव्राजक के पास गए! उस समय उनके पास ढाई सौ परिव्राजक शिष्य उपस्थित थे। वहां जाकर वे संजय परिव्राजक से बोले - हम भगवान बुद्ध के पास जा रहे हैं! वही हमारे गुरु होंगे! संजय बोला - आप मत जाओ! यह सब जमात तुम्हारी है! तुम इनका अनुशासन करो! इस प्रकार प्रलोभ न देकर संजय ने उन्हें समझाने का प्रयत्न किया। आग्रह किया, किंतु वह सफल नहीं हुआ। तब सारीपुत्र महामोद्गलयन और उनके वे 250 परिव्राजक भगवान के पास चले गए। जाकर उन्होंने भगवान के चरणों में शीश से वंदना कर, प्रार्थना की। भगवान भंते हमें आपसे प्रव्रज्या मिले, उपसंपदा मिले। तब भगवान ने कहा भिक्खूओ आओ धम्म सु आख्यात है। अच्छी प्रकार दुख के क्षय के लिए ब्रह्मचर्य का पालन करो। इस प्रकार ढाई सौ परिव्रजाको सहित सारीपुत्र महामोद्गलयन ने भगवान के पास प्रव्रज्जा और उपसंपदा ग्रहण की।
*सबका मंगल हो सबका कल्याण हो*
संदर्भ :- भगवान बुद्ध का इतिहास और धर्म दर्शन