*अनेक लोग मच्छरों से भी हार जाते हैं l*
मच्छरों को देखते ही उनका मानसिक संतुलन बिगड़ता है l
चित्त में से मङ्गल-मैत्री, दया, करुणा, प्रेम, स्नेह, सद्भावना, वात्सल्य, ममता, प्यार, मृदुता, शांति, समता आदी सद्गुण लुप्त (ग़ायब) हो जाते हैं l
और चित्त में क्रोध, द्वेष, दुर्भावना, क्रुरता, निर्दयता, हिंसकता, कठोरता, अशांति, व्याकुलता, बेचैनी आदि दुर्गुण उत्पन्न होते हैं l
ये दुर्गुण चित्त में उत्पन्न होने के कारण वे लोग क्रुरता और निर्दयता से मच्छरों की हत्या कर देते हैं l
मच्छरों को अपने आसपास देख कर भी जिनके चित्त में जरा सा भी क्रोध, द्वेष, दुर्भावना, क्रुरता, निर्दयता, हिंसकता, कठोरता, अशांति, व्याकुलता, बेचैनी आदि दुर्गुण बिल्कुल भी उत्पन्न नहीं होते हैं, जरा भी उत्पन्न नहीं होते हैं, बल्कि चित्त में असीम मङ्गल-मैत्री, दया, करुणा, प्रेम, स्नेह, सद्भावना, वात्सल्य, ममता, प्यार, मृदुता, शांति आदी सद्गुण ही उत्पन्न होते हैं, जिस कारण वे मच्छरों की हत्या नहीं करते हैं, वे ही सही मायने में समजदार शूर-वीर साधक हैं l
जब जब हमारे चित्त में मङ्गल-मैत्री, दया, करुणा, प्रेम, स्नेह, सद्भावना, वात्सल्य, ममता, प्यार, मृदुता, शांति, समता आदी सद्गुण है, तब तब हमारे चित्त में सद्गति के, मनुष्य लोक के, स्वर्ग लोक के, मुक्ति, निर्वाण के संस्कार बन रहे हैं, और हम स्वर्ग, मुक्ति, निर्वाण की ओर जा रहे हैं l
और इसके विपरीत किसी भी कारण से जब जब हमारे चित्त में क्रोध, द्वेष, दुर्भावना, क्रुरता, निर्दयता, हिंसकता, कठोरता, अशांति, व्याकुलता, बेचैनी आदि दुर्गुण उत्पन्न होते हैं, तब तब हमारे चित्त में दुर्गती के, नरक के, अधोगती के संस्कार बन रहे हैं और हम दुर्गती, नरक, अधोगती की और जा रहे हैं l
सबका मङ्गल हो, कल्याण हो ।
सारे प्राणी सुखी हो, निब्बानलाभी हो !
यह मैसेज अधिक से अधिक लोगों को भेजने का कष्ट करें l