🌹 कैंसर में समता का प्रभाव
सन 1995 में एक साधिका के थायराइड कैंसर के दो ऑपरेशन किए गए, ठीक हो गई पर भय मुक्त नहीं हो पा रही थी, क्योंकि सुन रखा था कि यह रोग हो गया तो बार-बार उभरते रहता है ,कहीं वापस हो गया तो क्या होगा, उस समय पूज्य गुरु जी ने उसे जो मार्गदर्शन दिया उनका पालन करके विपश्यना की यह आचार्य आज भी लोगों को धर्म दान दे रही हैं। उस बातचीत को उसके पति ने रिकॉर्ड किया था और टंकी त करवाकर भिजवाया है जिसे साधकों के लाभार्थ यहां प्रश्न उत्तर के रूप में प्रकाशित कर रहे हैं।
🌷 साधिका- मेरा दो बार कैंसर का ऑपरेशन हुआ है गुरुजी?
पूज्य गुरु जी -बेटी कैंसर हो गया तो क्या हुआ ।उसका सामना करना है।
साधिका - गुरु जी ,बहुत डर लग रहा है मैं जानती हूं कि ऐसा नहीं करना चाहिए?
गुरुजी- क्योंकि अंदर से समझ नहीं आई।अंदर से समझने के लिए जब भी चिंता आए ,भय आए तब उस समय देख 'अच्छा मेरे मन में भय आया है 'अब देखें क्या संवेदना है? उस वक्त कहीं भी शरीर में जो संवेदना हुई वह भय के साथ जुड़ी हुई है, उस संवेदना को देखना है। यद्यपि मन का एक हिस्सा भय में लिप्त हो रहा है, न जाने क्या हो जाएगा क्या हो जाएगा, परंतु मन का एक हिस्सा उस संवेदना को देख रहा है ,भले 5% ही हो बाकी 95% रोल कर रहा है ।लेकिन वह 5% इतना बलवान है कि जड़े काट देगा। और यदि 100% रोल करेगा तब तो बढ़ेगा ही ना।
विपस्सना से हमें इतना तो सीखना होता है कि हम अपने मानस का एक हिस्सा ऐसा बलवान बनाएं जो साक्षी भाव से देख रहा है ।अच्छा भाई हमें यह रोग है,और इस रोग का न जाने क्या परिणाम होगा ,इस चिंता को भी देख रहे हैं।यह चिंता आई तो उस समय संवेदना क्या है। संवेदना भी देख रहे हैं और यह चिंता है इसे भी देख रहे हैं ।यह संवेदना है, यह चिंता है, हम उसे बार-बार देखते हैं, यह भी जानते हैं कि संवेदना तो बदलती रहने वाली है ,सदा रहने वाली नहीं है। चिंता भी बदलने वाली है , देखते गए तो उसकी ताकत कम होते होते सारी चिंता निकल जाती है। यही तरीका है ,ऐसा नहीं हो और हम केवल बुद्धि से समझते रहे कि हमें चिंता नहीं करनी चाहिए तो ऐसा तो सारी दुनिया कहती है और करती है ,तब विपस्सना करने में और दुनिया के कहने में क्या फर्क हुआ।
🌹 साधिका- वही हो रहा है गुरु जी
गुरुजी- तो इसको समझना चाहिए ना बेटी ,हमें तो बताया गया कि तुम्हें रोग हो गया था वह निकल गया अब क्यों चिंता करती हो। चिंता के बाहर निकलने के लिए विपश्यना कि इतनी बड़ी विद्या मिली है ,जब ऐसा होने लगे तब देखो कि इस समय क्या संवेदना है।
संवेदना तो 24 घंटे होगी ऐसा हो नहीं सकता कि संवेदना नही हो, यह भी जरूरी नहीं कि सिर से पांव तक जाओ ,जहां संवेदना हुई साफ-साफ मालूम हुआ उसको देख रहे हैं ,अच्छा यह अनित्य है, चिंता का विषय आया यह भी अनित्य है ,जैसी भी हो कुछ लेनदेन नहीं ।
क्योंकि मन और शरीर का इतना बड़ा संबंध है उस वक्त मन में कोई बात जोर से उठी है वह शरीर में संवेदना के साथ जुड़ जाएगी ,शरीर में जो संवेदना है वह मन के साथ जुड़ी हुई है। उस समय मन में जो घटना घट रही है वह शरीर के साथ जुड़ गई और उसको हम देख नहीं सकते इतनी ताकत अभी आई नहीं कि हम चिंता को चिंता की तरह देख सके कि देख यह चिंता है। नहीं देख सकते क्योंकि आसान बात नहीं। ऐसे ही भय है, हम उसे नहीं देख पाते। तो भय है इसे स्वीकार कर लिया और 95% हमारा मन उसमें में रोल कर रहा है लेकिन 5% मन ऐसा है जो संवेदना को देखेगा, भले थोड़ी देर सही । यों देखते रहो संवेदना को और यह भी देखते रहो कि यह अनित्य है। जो भय आया है यह भी अनित्य है। अब देखेंगे कितनी देर रहता है। यों उसकी ताकत कम होते होते निकल जायेगा।
बहुत बार स्पष्ट दिखता है कि हम पर संकट आने वाला है ।बाहर कोई घटना ऐसी घटने वाली है जिससे हमारी कोई चीज नष्ट होने वाली है। भय जागा, न जाने क्या हो जाएगा? वह घटना तो पीछे घटेगी, मन में घबराहट पहले आ गई। ऐसे में हम जो बीज डालेंगे, बीज डालते ही एक तरह की संवेदना होगी। बीज का फल भी पीछे आएगा पर संवेदना पहले होगी ।फिर फल आएगा ।यह प्रकृति का नियम है ।बीज भी संवेदना के साथ, फल भी संवेदना के साथ। तो जब संवेदना आयी, फल आने में अभी देर है, परंतु संवेदना आ गई और हमने उसे देखना शुरू कर दिया तो उसकी ताकत कम होते होते वह फल आएगा भी तो फूल की छड़ी की तरह हल्का होकर आएगा। उसकी ताकत कम हो गई। यों समता से देख कर उसकी ताकत कम कर दी। आम आदमी क्या करता है, उस बेचारे को होश नहीं है तो जैसे हम कर रहे थे, चिंता ही करता है- हमारा क्या हो जाएगा, हमारा क्या हो जाएगा? उसका जो फल आने वाला है उसको और मजबूत बना देगा, बढ़ा देगा उसको बढ़ाने का काम कर रहे हो भाई ।भला चाहते हुए भी बुरा कर रहे हैं ,उल्टी बात हो गई ना। क्रमश.........