🌷प्रश्न- ईश्वर क्या है ? कहां है ? कौन है ? कैसा है ?
उत्तर:- हम क्या कहें भाई ? हम तो कहते हैं सत्य ही ईश्वर है । परम सत्य ही परमेश्वर है । अरे, अपने भीतर की सच्चाई को देखने लगे और देखते-देखते चित्त और शरीर, इन दोनों की सारी सच्चाई देख ली। स्थूल से स्थूल, वहाँ से शुरू करके सूक्षम से सूक्षम - सारा प्रपंच देख लिया इसका अतिक्रमण करके शरीर औरे चित्त के परे जो इन्द्रियातीत अवस्था है, उस अवस्था पर पहुंच गये, जो नित्य है, शाश्वत है, ध्रुव है ; उसका कोई नाम नहीं, उसका कोई रूप नहीं, आकृति नहीं---- उसका साक्षात्कार हो गया तो अपने आप ईश्वर का साक्षात्कार हो गया । यह साक्षात्कार करना चाहिए । केवल बुद्धि से मानने और न मानने से कोई बात बनती नहीं ।
🌹गुरूजी क्या आपकी ध्यान विधि में भगवत्प्राप्ति का प्रावधान नही है?
उत्तर--बिलकुल है!
भगवत्प्राप्ति का ही काम करना है।
हम अपने आपको भगवान् बनाने का ही काम करते हैं। यह स्वयं को भगवान् बनाने की साधना है।
भगवान् क्या होता है- जिसका राग भग्न हो गया, द्वेष भग्न हो गया, मोह भग्न हो गया वह मुक्ति के ऐश्वर्य का जीवन जीने वाला व्यक्ति भगवान् हो गया। उस अवस्था तक पहुँचने के लिये साधना कर रहें हैं। यह भगवत्प्राप्ति नही है तो और क्या है। हर व्यक्ति भगवत्प्राप्ति कर सकता है, भगवान् बन सकता है। उस अवस्था को प्राप्त कर सकता है। यह सब प्रैक्टिस करने से हो पायेगा। किसी की कृपा से नही। स्वयं काम करना होगा।