Thursday, November 14, 2019

विकारो से छुटकारा

🌷"विकारो से छुटकारा"🌷

याद करता हूँ की विकारो (defilements) से विकृत होकर मै कितना दुखी रहा करता था और इन विकारो से छुटकारा पाकर कितना दुःख-मुक्त हुआ।

इसलिये जी चाहता है की अधिक से अधिक लोग, जो अपने विकारो से विकृत हैं और इसलिये दुखी हैं, इस कल्याणकारी विधि द्वारा विकारो से छुटकारा पाना सीखें और दुखमुक्त होकर सुखलाभि हों।

🌻याद करता हूँ की जब मै विकारो से विकृत होकर दुखी होता था तो अपना दुःख अपने तक सिमित न रखकर औरों को बांटता था। औरों को भी दुखी बनाता था। उस समय मेरे पास बांटने के लिए दुःख ही था।

🌹अब जी चाहता है की इस कल्याणकारी विधि द्वारा जितना जितना विकारो से मुक्त हुआ और फलतः जो भी सुख- शांति मिली, उसे लोगों में बांटू।

इसे बाँटने पर सुख-संवर्धन होता है।

 मन प्रसन्न होता है।

इन दस दिन के शिविरो में लोग अक्सर मुरझाये हुए चेहरे लेकर आतें हैं और शिविर समाप्ति पर खिले हुए चेहरों से घर लौटते हैं तो सचमुच मन सुख-संतोष से भर उठता है।

🍁अधिक से अधिक लोग इस मंगलकारी विधि का लाभ उठाकर सुखलाभि हों, अधिक से अधिक लोगों का भला हो, कल्याण हो, मंगल हो, यही धर्म-कामना है।

मेरे व्यापार (business) में झूठ बोलना जरुरी हो जाता है, व्यवसाय बदल सकूँ, यह भी संभव नहीं तो ऐसे में क्या करें?

Que : मेरे व्यापार (business) में झूठ बोलना जरुरी हो जाता है, व्यवसाय बदल सकूँ, यह भी संभव नहीं तो ऐसे में क्या करें?

उत्तर--ऐसा लगता है की बिना झूठ बोले व्यापार नही किया जा सकता। 

परंतु मैंने देखा है की सच्चाई का व्यापार आरम्भ करने में अवश्य थोड़ी कठिनाई आती है, लेकिन अगर दृढ चित्त करके, दृढ निर्णय करके(firm determination) सच्चाई से ही व्यापार करे तो धीरे धीरे बाजार में एक साख जमती है, एक प्रतिष्ठा जमती है की यह आदमी झूठ बोलकर ठगेगा नहीं। 

🌷 इससे ग्राहक बढ़ते है, काम बढ़ता है, व्यापार बढ़ता है। 

इसलिये इस प्रारंभिक कठिनाई का सामना करने पर अपने आप रास्ता खुलता चला जाएगा।

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🌸गुरूजी क्या व्यापार में बेईमानी से बचना असंभव है? कितनी भी कोशिश कर लूँ, मेरे ईमानदार रहना असंभव है। मुझे मजबूरन बेईमानी का साथ देना पड़ता है। कृपया मार्गदर्शन दें।

उत्तर-केवल पैसा कमाने से शांति नही मिलती। मै इन सब से गुजरा हूँ तो जानता हूँ की अधिक धन बहुत दुःख देता है।
धन हो और धर्म भी हो तो बहुत शांति मिलती है।
शील पालन का प्रयास रहे।

🌷जैसे जैसे धर्म में पकोगे, आसक्ति कम होगी और ईमानदार रहना आसान हो जाएगा।

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Student :  In business it is necessary to speak half-truths and sometimes even lies. 

Goenkaji explained, “It is our greed that makes us believe that we cannot be totally honest in business. 

If one practices Vipassana, one realizes that honesty is really the best policy. 

🌷 And as one becomes an honest businessman, the word spreads, and business gets even better. 
And this also helps to improve the overall atmosphere in the business world."

ऐसे थे पुज्य गुरुदेव

*💛ऐसे थे पुज्य गुरुदेव !🙏*

*🌳🌹“मैं जा रहा हूँ, धर्म जा रहा हैं ”*

*💐मेरे वृद्ध माता पिता 1965 में बर्मा छोड़कर भारत चले गए। और वहीं बस गए। उनके दो पुत्र सपरिवार वहीं बसे हुए थे। 1968 के आसपास माता को एक स्नायु-दौर्बल्य का रोग लग गया जो बढ़ता ही गया। मैं जानता था कि वह विपश्यना करेगी तो इस रोग की पीड़ा से मुक्त हो जाएगी। परंतु भारत में तो कोई विपश्यना का नाम ही नहीं जानता था। उसे कौन सिखाएगा? मैंने बर्मी सरकार के सम्बन्धित विभाग को आवेदन पत्र चढ़ाया कि बर्मी नागरिक होते हुए भी मुझे भारत जाने की अनुमति दे ताकि मैं अपनी रुग्ण मां की सेवा कर सकें । ऐसे किसी कारण को लेकर वहां किसी को कभी पासपोर्ट नहीं मिला था। सरकार ने जब मुझे पासपोर्ट दे दिया तो बड़ा सुखद आश्चर्य हुआ और मैने संबंधित अधिकारियों का बड़ा उपकार माना।*

*🌹जब गुरुदेव को यह खबर मिली कि मुझे भारत जाने की सरकारी अनुमति मिल गई है तो वे भी बड़े प्रसन्न हुए। उन्होंने इसे बहुत शुभ माना। वह देखते थे कि मैं अपनी मां की सेवा में विपश्यना शिविर लगाऊंगा तो उसके साथ परिवार के कुछ अन्य लोग व बाहर के लोग भी सम्मिलित होंगे ही और बस इसी से भारत में पुनः धर्मचक्र का प्रवर्तन शुरू हो जाएगा। उन्होंने मुझे इस पुनीत कार्य के लिए पूरा-पूरा प्रोत्साहन दिया और मार्गदर्शन भी।*

*💐जैसे-जैसे मेरे भारत प्रस्थान का दिवस समीप आ रहा था, उनकी प्रसन्नता बढ़ती जा रही थी। अब उनके अंतर की धर्म-कामना पूर्ण होगी । बर्मा का ऋण चुकेगा। भारत को अनमोल रत्न मिलेगा। उन्होंने मुझे अत्यंत करुण चित्त से विधिवत् विपश्यना के आचार्य पद पर प्रतिष्ठित किया और प्रभूत मंगल मैत्री से मेरा धर्म अभिषेक किया।*

*🌹भारत में स्वतंत्र रूप से विपश्यना सिखा सकने की मेरी झिझक देखी तो बहुत आश्वासन भरे शब्दों में कहा, -*

*🌹“भारत तुम नहीं जा रहे हो, समझो मैं ही जा रहा हूँ, सद्धर्म जा रहा है। भारत का बर्मा पर जो ऋण है वह हमें चुकाना है।"*

*💐उनके इन आश्वासन भरे शब्दों का संबल प्राप्त कर मैं भारत की धर्म-यात्रा पर निकला गुरुजी ने कहा था धर्म की सारी शक्तियां तुम्हारा साथ देंगी। सारी प्रकृति तुम्हें सहयोग देगी। भारत की धरती तुम्हारे साथ आयी हुई धर्म-तरंगों को पाकर प्रसन्नता से भर उठेगी।*

*🌹सचमुच यही हुआ। 22 जून, 1969 को पूर्वान्ह के समय U.B.A का हवाई जहाज दमदम के हवाई अड्डे पर उतरा और मैं भारत की पावन बुद्ध-धरती को मन ही मन नमन करता हुआ जैसे ही विमान से उतरा कि एक हलकासा भूकंप आया। दूसरे दिन के समाचार पत्र में पढ़ा कि उत्तर भारत की धरती पर, समस्त मज्झिम देश में, धीमा सा भूकंप आया था। अपनी खोई हुई अनमोल संपदा को लौटते देख कर अनेक बुद्धों और बोधिसत्त्वों की यह पावन धरती मानो पुलक रोमांच से भरकर आह्लादित हो उठी।*

*💐और सचमुच सारी प्रकृति ने अपूर्व सहयोग दिया मुझे। विघ्न-बाधाओं भरी प्रारंभिक कठिनाइयों के बावजूद अगले महीने ही भारत में विपश्यना का पहला शिविर लगा, जिसमें माता पिता के साथ कुछ परिचित, कुछ अपरिचित कुल मिलाकर १४ साधक-साधिकाओ ने भाग लिया और इसके बाद भारत में सहज भाव से धर्मचक्र चलने लगा।*

*🌹गुरुदेव को जैसे-जैसे इन शिविरों की सफलता की सूचना पहुँचती, उनका मानस प्रसन्नता से भर-भर उठता; यह देखकर कि चिरकाल से सँजोया हुआ उनका स्वप्न अब साकार हो रहा है।*

*💐सचमुच रत्न ही तो लाया ! समस्त व्यापार उद्योग और नौकरियों के राष्ट्रीयकरण कर लिए जाने के कारण बरमा के अनेक भारतीय आजीविक-विहीन हो गए थे। अत: बड़ी संख्या में स्वदेश लौटने लगे थे। बर्मा छोड़ते हुए वह अपने साथ कोई आभूषण या अन्य मूल्यवान वस्तुएं नहीं ले जा सकते थे। अपनी जीवनभर की कमाई में से जो कुछ बचा पाए थे उसे यूं छोड़कर जाना अनेकों के लिए कठिन था। अतः आसक्तिवश वे इसे अवैध तरीके से ले जाना चाहते थे। बरमा लालमणि आदि रत्नों का घर था। अतः एक तरीका लोग यह अपनाते थे कि ऐसे कीमती रत्न छिपाकर साथ ले जाते थे। बर्मी सरकार के अधिकारी उसे रोकने के लिए बहुत सतर्क रहते थे। हवाई अड्डे पर कस्टम के अधिकारी खूब कड़ी चेकिंग करते थे। जिस दिन मैं बरमा छोड़ रहा था, हवाई अड्डे पर पहुंचकर इमिग्रेशन की औपचारिकता पूरी करके कस्टम के काउंटर पर गया तो एक परिचित अफसर दिखाई दिया। उसने मुस्कराकर पूछा-*

*🌹गोइन्का , तुम भी जा रहे हो?”*
*“हां भाई, जा तो रहा हूं!”* 
*मैंने भी मुस्कराते हुए उत्तर दिया। कोई कीमती चीज तो साथ नहीं ले जा रहे?” उसने पूछा,*
*🌹हां भाई, ले जा रहा हूं, एक कीमती रत्न ले जा रहा हूँ!" मैंने मुस्कराकर उत्तर दिया।*

*💐कस्टम अफसर घबराया। परिचित होते हुए भी उसे अपने दायित्व का बोध था। वह बहुत सजग होकर मेरा सामान खोल-खोलकर देखने लगा। आखिर सामान था ही कितना। एक छोटे से बक्से में चंद पहनने के कपड़े और कुछ पुस्तकें । उसे कुछ नहीं मिल रहा था और उसकी परेशानी बढ़ रही थी। मैं मुस्कराकर देख रहा था।*

*🌹आखिर उसकी परेशानी दूर करते हुए मैंने कहा, “भाई मेरे, मैं जो रत्न यहां से ले जा रहा हूं, वह अपने देश पर भारत का पुराना कर्ज है, उसे उतारने के काम आएगा। यह रत्न मूलतः भारत से ही आया था। आज इसकी वहां बहुत आवश्यकता है। इसे यहां से ले जाने पर बर्मा विपन्न नहीं होगा। मैं जो ले जा रहा हूं, वह धर्म का रत्न है।”*

*💐चुंगी का अधिकारी यह सुनकर बहुत प्रसन्न हुआ। वह जानता था कि मैं सयाजी का विपश्यी शिष्य हूं। हँसते हुए बोला*

*🌹“यह रत्न तो तुम अवश्य ले जाओ! मुझे प्रसन्नता है कि तुम इससे हमारे देश का पुराना कर्ज चुका सकोगे।”*

*💐और यही तो किया मैंने। भारत का यह धर्म-रत्न भारत को लौटाने आया, जो कि गुरुदेव की तीव्र धर्म-कामना थी।*

*💛💐बाद में मेरे मित्रों से सूचना मिली कि वह चुंगी का अधिकारी जब-जब धर्म बांटने के कार्य में मिलनेवाली सफलता के समाचार सुनता तो बड़ा प्रसन्न होता ।*

*💜💐मंगल मित्र*

*💛🌹श्री सत्यनारायण जी गोयनका🙏*

*💚💐साभार:श्री गोपी चन्द जी गुप्ता✍*

*💜💐शिवृंदा💐💖*

Questions & Answers

Questions & Answers

Question: Please advise us how to answer the following questions briefly: What is a sensation?
Goenkaji: Whatever you feel at the physical level on your body, we call it a sensation.

Question: Why do we get sensation?
Goenkaji: Because you are alive. Your mind and matter-nāma and rūpa-are working together. Where there is no nāma, no mind, one cannot feel. An inanimate body cannot feel sensations. This pillar cannot feel sensations. Wherever there is life, sensations can be felt.

Question: What is equanimity?
Goenkaji: When you don't react to sensations, you experience equanimity.

Question: What do we mean when we say not to react?
Goenkaji: Don't generate craving for pleasant sensations. Don't generate aversion for unpleasant sensations. Then you are not reacting.

Question: What is a free flow?
Goenkaji: There is nothing that flows. It is only your mind which moves from head to feet, or feet to head rapidly, because there is no obstacle on the way. Now there are no longer any blind areas or gross, solidified sensations-only very subtle vibrations of the same type. Your mind moves easily, and it feels as if a flow is there. The whole purpose is that you understand that no matter whether there are gross sensations, or subtle sensations, your mind must remain equanimous. Don't react with aversion towards the gross sensations. Don't react with craving for the pleasant sensations.

(20 January 1996, Annual Meeting: Dhamma Giri)
Source:
http://www.vridhamma.org/en2001-07

Maintain equanimity; that is the smartest way!

💐 Question: "This morning my practice was very powerful, but in the afternoon I began to feel really hopeless and angry, and to think, 'Oh, what's the use!' It was just as if when the meditation was strong, an enemy inside me— the ego perhaps—matched that strength and knocked me out. And then I felt I did not have the strength to fight it. Is there some way to sidestep so that I don't have to fight so hard, some clever way to do it?"

"Goenkaji: 

Maintain equanimity; that is the smartest way! 

What you have experienced is quite natural. When the meditation seemed to you to be going well, the mind was balanced, and it penetrated deeply into the unconscious. As a result of that deep operation, a past reaction was shaken and came to the surface level of the mind, and in the next sitting you had to face that storm of negativity. 

In such a situation equanimity is essential, because otherwise the negativity will overpower you, and you cannot work. If equanimity seems weak, start practising the awareness of respiration. When a big storm comes, you have to put down your anchor and wait until it passes away. The breath is your anchor. Work with it and the storm will pass. 

🌷 It is good that this negativity has come to the surface, because now you have the opportunity to clear it out. If you keep equanimity it will pass away easily."