🌷अनमोल जीवन🌷
धर्म की केवल चर्चा होकर रह जाय, धर्म को केवल मनोरंजन का विषय समझ कर रह जायँ तो भाई बहुत कुछ खो दिया ।
इस तरह की धर्म सभाओं में आना, बुरी बात नहीं है लेकिन अगर यह मनोरंजन का विषय हो गया - चलो आज इनको सुन लिया , कल उनकी सुनें , परसों उसकी सुनें . . . । सुनते ही रह जाओगे सारी जिंदगी भर । करोगे कुछ नहीं ।
जिस दिन यह जान लोगे कि मुझे करना है । मुझे सत्य को अनुभूति पर उतार कर स्वयं देखना हैं कि मेरा विकार कहां जागता है ? कैसे संवर्धन करता है ? उसको कैसे रोका जा सकता हैं ? कैसे जड़ों से दूर किया जा सकता हैं ? बस , कल्याण का रास्ता मिल गया ।इस देख ने की विद्या को विपश्यना कहते हैं । यह बहुत प्राचीन , बहुत पुरानी विद्या है ।
भारत का एक महान संत कहता हैं - मैं चारों ओर जिसको देखूं , वही बहुत बोलता हैं । बोलने वाले को बोलने का व्यसन लग गया , बोले जा रहा हैं । बड़ा खुश होता हैं , देखो इतने लोग सुन रहे हैं मुझे । देखो , मैं कितना अच्छा वक्ता हूं , कैसा अच्छा धर्म - गुरु हूं । यही व्यसन लग गया । और सुनने वालों को यह व्यसन लग गया कि आज तो बहुत अच्छा सुना , अरे आज तो धर्म इतना बढ़िया सुना , इतना बढ़िया सुना । दोनों अपनी मस्ती में हैं । तो कहता हैं कि भाई कि भाई , कथे न होई - बोलने से कुछ नहीं होता , सुने न होई - केवल सुनने से कुछ नहीं होता । तो किससे होता हैं ? तो कहता हैं - कीये होई !! करने से होता हैं. ।
करने से होगा भाई । काम करना हैं. । मनुष्य का जीवन बड़ा अनमोल जीवन । अनमोल जीवन इस माने में कि यह काम कोई पशु नहीं कर सकता । कोई पक्षी नहीं कर सकता , कोई प्रेत - प्राणी नहीं कर सकता , कोई कीट - पतंग नहीं कर सकता । यह काम केवल मनुष्य कर सकता हैं । प्रकृति ने या कहो परमात्मा ने इतनी बड़ी शक्ति मनुष्य को दी हैं कि वह अंतर्मुखी हो करके अपने विकारों के उद्गम क्षेत्र में जा करके, उनका निष्कासन कर सकता हैं , उनको निकाल सकता हैं , भव से मुक्त हो सकता हैं । अरे , ऐसा अनमोल जीवन और बाहरी बातों में बिता दें ? नहीं, अब होश जागना चाहिए । अंतर्मुखी होकर सत्य का दर्शन करें और सही माने में अपना कल्याण कर लें !