🌷"यथाभूत दर्शन"🌷
यथार्थ में जीना वर्तमान में जीना है, इस क्षण में जीना है।
क्योंकि बीता हुआ क्षण यथार्थ नही वह तो समाप्त हो चूका है।
अब तो केवल उसकी याद ही रह सकती है, वह क्षण नही।
इसी तरह आने वाला क्षण अभी उपस्थित नही है, उसकी केवल कल्पना हो सकती है, कामना हो सकती है, उसका यथार्थ दर्शन नही हो सकता।
🍁वर्तमान में जीने का अर्थ है, इस क्षण में जो कुछ अनुभूत हो रहा है, उसी के प्रति जागरूक होकर जीना।
भूतकाल की सुखद या दुखद स्मृतिया अथवा भविष्य की दुखद आशंकाएं या सुखद आशाएँ हमे वर्तमान से दूर ले जातीं हैं और इस प्रकार सच्चे जीवन से विमुख रखती हैं।
🌻वर्तमान से विमुख यह थोथा निस्सार जीवन ही हमारे लिये विभिन्न क्लेशो का कारण बनता है। अशांति, असंतोष, अतृप्ति, आकुलता, व्यथा और पीड़ा को ही जन्म देता है।
जैसे ही हम इस क्षण का यथाभूत दर्शन करने लगते हैं, वैसे ही क्लेशो से स्वभाविक मुक्ति मिलने लगती है।
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🌹 🌹 🌹 बुद्ध वाणी 🌹 🌹 🌹
अतीतं नान्वाग्मेय्य न पटिकंखे अनागतं।
यं अतीतं पहीणं तं अप्पत्तंच अनागतं ।।
पच्चुपन्नंच यो धम्मं तत्थ तत्थ विपस्सति ।
असंहीर असंकुप्पा तं विद्वा अनुब्रूहये ।।
मज्झिम निकाय 131
भूतकाल को यादकर व्यग्र - व्याकुल न हों , भविष्य की कपोल - कल्पना के प्रति कामनाग्रस्त न हों । भूतकाल तो बीत चूका , भविष्य अभी आया नहीं ।
इस क्षण जो - जो जहां - जहां उत्पन्न हुआ है , उस धर्म को , उस स्थिति को , समझदार आदमी वहां - वहां देखे ।
न राग - रंजित हो कर उससे चिपके और न ही द्वेष - दूषित हो कर उससे कुपित हो । इस प्रकार अनासक्त हो साक्षी स्वभाववाली विपश्यना का अभ्यास करे , उसका विकास करे ।
🍃 🍃 🍃 मंगल हो 🍃 🍃 🍃
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🌷Words of Dhamma🌷
"Atītaṃ nānvāgameyya, nappaṭikaṅkhe anāgataṃ;
yadatītaṃ pahīnaṃ taṃ, appattañca anāgataṃ.
Paccuppannañca yo dhammaṃ, tattha tattha vipassati; asaṃhīraṃ asaṃkuppaṃ, taṃ vidvāmanubrūhaye.
Ajjeva kiccamātappaṃ ko jaññā maraṇaṃ suve;
Na hi no saṅgaraṃ tena mahāsenena maccunā.
Evaṃ vihāriṃ ātāpiṃ, ahorattamatanditaṃ;
taṃ ve bhaddekaratto’ti santo ācikkhate muni."
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One should not linger on the past nor yearn for what is yet to come. The past is left behind, the future out of reach. But in the present he observes with insight each phenomenon, immovable, unshakable. Let the wise practice this.
Today, strive at the task. Tomorrow death may come—who knows? We can have no truce with death and his mighty horde. Thus practicing ardently, tireless by day and night; for such a person, even one night is auspicious, says the Tranquil Sage.
—— Bhaddekarattasuttaṃ, Majjhimanikāya, Uparipaṇṇāsapāḷi, Vibhaṅgavaggo
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🌹गुरूजी इस जीवन में हमारे साथ जो भी हो रहा है, क्या वह हमारे पूर्व कर्मो का ही परिणाम है?
उत्तर-- यह सच है तो भी हम इसके कारण अपने आप को निष्क्रिय न बना लें।यह सोचकर की हमारे पूर्व कर्म के अनुसार जो होने वाला है सो तो होगा ही, हम उसमे क्या कर सकते हैं? यह धर्म के, प्रकर्ति के नियमो के बिलकुल विरुद्ध चिंतन होगा।
यह सच है कि पुराने कर्म हमारे इस जीवन की धारा को सुखद या दुखद मोड़ देते हैं, परंतु हमारा वर्तमान कर्म बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि वर्तमान के हम मालिक हैं।और यह मिलकियत अगर हमने हासिल कर ली तो हम इस धारा को अगर दुखद है तो उसे मोड़ने में सफल हो सकते हैं।
🌻पहले तो उसका सामना करना सीखेंगे, समता स्थापित करेंगे, फिर देखेंगे की मोड़ने के काम में लग गए।दुःख सुख में बदलने लगा।लेकिन अगर यह मानकर बैठ गए की दुःख तो आने ही वाला है क्योंकि हमारे पुराने कर्म ही ऐसे हैं तो चिंतन गलत हो जाएगा।
और यदि जीवनधारा सुखमय है तो भी हम सत्कर्मो में लगे रहेंगे तो यह सुखद धारा और अधिक सुखद बनेगी।
🌷तो हर हालत में वर्तमान कुशल कर्म को अधिक से अधिक महत्त्व देने में ही समझदारी है।