. *🌹धम्मपद🌹*
*४१२.*
*योध पुञ्ञञ्च पापञ्च ,*
*उभो सङ्गमुपच्चगा ।*
*असोकं विरजं सुध्दं ,*
*तमहं ब्रूमि ब्राह्मणं ।।*
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➡ जो यहां *(इस लोक में)* पुण्य और पाप दोनो के प्रति आसक्ति से परे चला गया है , जो शोकरहित , विमल और शुध्द है , उसे मैं ब्राह्मण कहता हूं ।
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*ब्राम्हणवग्गो*
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